श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  8.23.14 
 
 
ब्रह्मन् सन्तनु शिष्यस्य कर्मच्छिद्रं वितन्वत: ।
यत् तत् कर्मसु वैषम्यं ब्रह्मद‍ृष्टं समं भवेत् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सर्वमान्य ब्राह्मण शुक्राचार्य! आप यज्ञ करने वाले अपने शिष्य बलि महाराज के उस अपराध या त्रुटि का वर्णन कीजिए, जिसका निराकरण कार्यकुशल ब्राह्मणों की उपस्थिति में विचारोपरान्त किया जाएगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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