श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.23.10 
 
 
नित्यं द्रष्टासि मां तत्र गदापाणिमवस्थितम् ।
मद्दर्शनमहाह्लादध्वस्तकर्मनिबन्धन: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने प्रह्लाद महाराज को आश्वस्त करते हुए कहा कि तुम वहाँ पर हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल लेकर अपने नित्य रूप में मेरा दर्शन कर सकोगे। वहाँ पर मेरे प्रत्यक्ष दर्शन से होने वाले दिव्य आनंद के कारण तुम कर्म-बन्धन से मुक्त हो जाओगे और तुम्हें किसी भी प्रकार के कर्म-फल की इच्छा नहीं रहेगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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