श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 23: देवताओं को स्वर्गलोक की पुनर्प्राप्ति  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  8.23.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्युक्तवन्तं पुरुषं पुरातनं
महानुभावोऽखिलसाधुसम्मत: ।
बद्धाञ्जलिर्बाष्पकलाकुलेक्षणो
भक्त्युत्कलो गद्गदया गिराब्रवीत् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब परम पुरातन नित्य भगवान् ने बलि महाराज, जो सर्वत्रमान्य शुद्ध भक्त तथा महात्मा हैं, उनसे यह कहा तो बलि महाराज ने आँखों में आँसू भरकर, हाथ जोडक़र तथा भक्तिभाव के कारण लडख़ड़ाती वाणी से इस प्रकार उत्तर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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