उस भौतिक शरीर से क्या लाभ जो स्वामी को जीवन के अंत में स्वतः ही छोड़ के चला जाता है? उन सभी परिवार के सदस्यों से क्या लाभ, जो दरअसल उस धन का अपहरण करते हैं जो भगवान की सेवा और आध्यात्मिक संपन्नता में उपयोग हो सकता है? उस पत्नी से क्या लाभ, जो भौतिक दशाओं को बढ़ाने का ज़रिया मात्र है? उस परिवार, घर, देश और समाज से क्या लाभ, जिसमें आसक्त होने से जीवनभर की मूल्यवान ऊर्जा मात्र बर्बाद हो जाती है?