श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  8.22.4 
 
 
पुंसां श्लाघ्यतमं मन्ये दण्डमर्हत्तमार्पितम् ।
यं न माता पिता भ्राता सुहृदश्चादिशन्ति हि ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि कभी-कभी कोई व्यक्ति का पिता, माता, भाई या मित्र उसके भले के लिए उसे दंडित कर सकते हैं, पर वे कभी भी अपने आश्रित को इस प्रकार दंडित नहीं करते। किंतु आप सर्वोच्च पूजनीय भगवान हैं इसलिए आपने मुझे जो दंड दिया है उसे मैं अत्यंत प्रशंसनीय समझता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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