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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण
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श्लोक 36
श्लोक
8.22.36
तत्र दानवदैत्यानां सङ्गात्ते भाव आसुर: ।
दृष्ट्वा मदनुभावं वै सद्य: कुण्ठो विनङ्क्ष्यति ॥ ३६ ॥
अनुवाद
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क्योंकि वहाँ तुम मेरे असीम पराक्रम का साक्षात्कार करोगे, तो राक्षसों और दानवों की संगति के कारण उत्पन्न हुए भौतिकवादी विचार और चिंताएँ तुरंत नष्ट हो जाएँगी।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत बाईसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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