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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण
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श्लोक 33
श्लोक
8.22.33
इन्द्रसेन महाराज याहि भो भद्रमस्तु ते ।
सुतलं स्वर्गिभि: प्रार्थ्यं ज्ञातिभि: परिवारित: ॥ ३३ ॥
अनुवाद
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हे बलि महाराज (इन्द्रसेन)! अब तुम सुतललोक जाओ, जिसकी कामना देवता भी करते हैं। वहाँ अपने मित्रों और परिजनों के संग शांतिपूर्वक रहो। तुम्हारा मंगल हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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