श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  8.22.32 
 
 
तावत् सुतलमध्यास्तां विश्वकर्मविनिर्मितम् ।
यदाधयो व्याधयश्च क्लमस्तन्द्रा पराभव: ।
नोपसर्गा निवसतां सम्भवन्ति ममेक्षया ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  जब तक बलि महाराज इन्द्र का पद प्राप्त नहीं करेंगे तब तक वे सुतललोक में निवास करेंगे, जिसे विश्वकर्मा ने मेरे निर्देशानुसार निर्मित किया था। चूँकि सुतललोक मेरी विशेष सुरक्षा में है इसलिए यह शारीरिक और मानसिक कष्टों, थकान, निराशा, हार और अन्य परेशानियों से मुक्त है। हे बलि महाराज, आप शांतिपूर्वक वहाँ रह सकते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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