श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  8.22.3 
 
 
बिभेमि नाहं निरयात् पदच्युतो
न पाशबन्धाद् व्यसनाद् दुरत्ययात् ।
नैवार्थकृच्छ्राद् भवतो विनिग्रहा-
दसाधुवादाद् भृशमुद्विजे यथा ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरी सम्पूर्ण सम्पत्ति का नाश हो जाना, नारकीय जीवन व्यतीत करना, दरिद्रता के कारण वरुणपाश में बँधना या आपके द्वारा दंडित किया जाना, इन सब से मुझे उतना भय नहीं लगता जितना कि मेरी बदनामी से लगता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.