श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.22.25 
 
 
यदा कदाचिज्जीवात्मा संसरन् निजकर्मभि: ।
नानायोनिष्वनीशोऽयं पौरुषीं गतिमाव्रजेत् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने कर्मों के फलस्वरूप विभिन्न योनियों में जन्म-मरण के चक्र में बार-बार घूमने वाला आश्रित जीव, सौभाग्यवश कभी-कभी मनुष्य शरीर प्राप्त कर सकता है। यह मानव जन्म बहुत ही दुर्लभ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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