वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
»
अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण
»
श्लोक 25
श्लोक
8.22.25
यदा कदाचिज्जीवात्मा संसरन् निजकर्मभि: ।
नानायोनिष्वनीशोऽयं पौरुषीं गतिमाव्रजेत् ॥ २५ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
अपने कर्मों के फलस्वरूप विभिन्न योनियों में जन्म-मरण के चक्र में बार-बार घूमने वाला आश्रित जीव, सौभाग्यवश कभी-कभी मनुष्य शरीर प्राप्त कर सकता है। यह मानव जन्म बहुत ही दुर्लभ है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.