श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  8.22.23 
 
 
यत्पादयोरशठधी: सलिलं प्रदाय
दूर्वाङ्कुरैरपि विधाय सतीं सपर्याम् ।
अप्युत्तमां गतिमसौ भजते त्रिलोकीं
दाश्वानविक्लवमना: कथमार्तिमृच्छेत् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  जिनके मन में द्वैत नहीं होता, वे भगवान के चरणों में केवल जल, दूर्वा या अंकुर अर्पित करके वैकुण्ठ में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकते हैं। इन बलि महाराज ने अब तीनों लोकों की हर चीज समर्पित कर दी है। तो फिर वे कैसे कारावास के दंड के हकदार हो सकते हैं?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.