श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  8.22.14 
 
 
तस्मै बलिर्वारुणपाशयन्त्रित:
समर्हणं नोपजहार पूर्ववत् ।
ननाम मूर्ध्नाश्रुविलोललोचन:
सव्रीडनीचीनमुखो बभूव ह ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  वरुण पाश से बँधे होने के कारण बलि महाराज प्रह्लाद महाराज को पहले की तरह सम्मान नहीं दे सके। उन्होंने केवल सिर झुकाकर प्रणाम किया, उनकी आँखों में आँसू थे और शर्म के कारण उनका सिर नीचा था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.