श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 22: बलि महाराज द्वारा आत्मसमर्पण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  8.22.13 
 
 
तमिन्द्रसेन: स्वपितामहं श्रिया
विराजमानं नलिनायतेक्षणम् ।
प्रांशुं पिशङ्गाम्बरमञ्जनत्विषं
प्रलम्बबाहुं शुभगर्षभमैक्षत ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  तब बलि महाराज ने अपने पितामह, परम भाग्यशाली प्रह्लाद महाराज को देखा। उनका श्यामल शरीर काजल के समान लग रहा था। उनका लंबा, सुंदर शरीर पीले वस्त्र से सुशोभित था। उनकी भुजाएँ लंबी थीं और उनकी सुंदर आँखें कमल की पंखुड़ियों के समान थीं। वे बहुत प्रिय और मोहक व्यक्तित्व वाले थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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