तोयै: समर्हणै: स्रग्भिर्दिव्यगन्धानुलेपनै: ।
धूपैर्दीपै: सुरभिभिर्लाजाक्षतफलाङ्कुरै: ॥ ६ ॥
स्तवनैर्जयशब्दैश्च तद्वीर्यमहिमाङ्कितै: ।
नृत्यवादित्रगीतैश्च शङ्खदुन्दुभिनि:स्वनै: ॥ ७ ॥
अनुवाद
उन्होंने सुगंधित फूल, पानी, पाद्य और अर्घ्य, चंदन और अगरु का लेप, धूप, दीये, लावा, अक्षत, फल, मूल और अंकुर से भगवान की पूजा की। ऐसा करते समय उन्होंने भगवान के यशस्वी कार्यों का गुणगान किया और जय-जयकार की। इस प्रकार भगवान की पूजा करते हुए उन्होंने नृत्य किया, वाद्य यंत्र बजाए, गाया और शंख और डुंडुभियां बजाईं।