श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 21: भगवान् द्वारा बलि महाराज को बन्दी बनाया जाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  8.21.4 
 
 
धातु: कमण्डलुजलं तदुरुक्रमस्य
पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र ।
स्वर्धुन्यभून्नभसि सा पतती निमार्ष्टि
लोकत्रयं भगवतो विशदेव कीर्ति: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा! ब्रह्मा जी के कमंडल से निकला जल उरुक्रम भगवान वामनदेव के चरणों से बह रहा था। इस प्रकार वह जल इतना पवित्र हो गया कि गंगा जल में बदल गया। यह जल आकाश से नीचे बहते हुए तीनों लोकों को शुद्ध कर रहा था। मानो भगवान की शुद्ध यश गंगा इस प्रकार बह रही हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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