श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 21: भगवान् द्वारा बलि महाराज को बन्दी बनाया जाना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  8.21.34 
 
 
विप्रलब्धो ददामीति त्वयाहं चाढ्यमानिना ।
तद् व्यलीकफलं भुङ्‌क्ष्व निरयं कतिचित् समा: ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे पास जितनी भी संपत्ति है उस पर गर्व कर, तुमने मुझे भूमि दान देने का वादा किया था, लेकिन तुम अपने वादे को पूरा नहीं कर पाए। इसलिए, क्योंकि तुम्हारा वादा झूठा था, तो तुम्हें कुछ वर्षों तक नारकीय जीवन बिताना होगा।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत इक्कीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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