श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 21: भगवान् द्वारा बलि महाराज को बन्दी बनाया जाना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  8.21.33 
 
 
वृथा मनोरथस्तस्य दूर: स्वर्ग: पतत्यध: ।
प्रतिश्रुतस्यादानेन योऽर्थिनं विप्रलम्भते ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  जिस व्यक्ति ने भिखारी को वचन देकर ठीक से दान न दिया हो उसके स्वर्ग जाने या उसकी इच्छा पूरी होने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती, बल्कि उसे नारकीय जीवन का दुख भोगना पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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