श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन » अध्याय 21: भगवान् द्वारा बलि महाराज को बन्दी बनाया जाना » श्लोक 31 |
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| | श्लोक 8.21.31  | पदैकेन मयाक्रान्तो भूर्लोक: खं दिशस्तनो: ।
स्वर्लोकस्ते द्वितीयेन पश्यतस्ते स्वमात्मना ॥ ३१ ॥ | | | अनुवाद | इस सृष्टि की उपाधि में से, एक पग से मैंने भूलोक को अपने अधिकार में कर लिया है, और मेरे स्वरूप से मैंने सारा आकाश और सभी दिशाओं को अपने अधीन कर लिया है। और तुम्हारी उपस्थिति में, मैंने अपने दूसरे पग से ऊपरी आकाश को अपने अधीन कर लिया है। | | इस सृष्टि की उपाधि में से, एक पग से मैंने भूलोक को अपने अधिकार में कर लिया है, और मेरे स्वरूप से मैंने सारा आकाश और सभी दिशाओं को अपने अधीन कर लिया है। और तुम्हारी उपस्थिति में, मैंने अपने दूसरे पग से ऊपरी आकाश को अपने अधीन कर लिया है। |
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