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श्लोक 8.21.1  |
श्रीशुक उवाच
सत्यं समीक्ष्याब्जभवो नखेन्दुभि-
र्हतस्वधामद्युतिरावृतोऽभ्यगात् ।
मरीचिमिश्रा ऋषयो बृहद्व्रता:
सनन्दनाद्या नरदेव योगिन: ॥ १ ॥ |
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अनुवाद |
शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : जब कमलपुष्प से उत्पन्न ब्रह्माजी ने देखा कि उनके लोक ब्रह्मलोक का तेज भगवान वामनदेव के पैर के अँगूठे के नाखूनों के चमकीले तेज से कम हो गया है, तो वे भगवान के पास गये। ब्रह्माजी के साथ मरीचि इत्यादि ऋषि तथा सनन्दन जैसे योगीजन थे, किन्तु हे राजा! उस तेज के समक्ष ब्रह्मा तथा उनके साथी भी नगण्य प्रतीत हो रहे थे। |
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शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : जब कमलपुष्प से उत्पन्न ब्रह्माजी ने देखा कि उनके लोक ब्रह्मलोक का तेज भगवान वामनदेव के पैर के अँगूठे के नाखूनों के चमकीले तेज से कम हो गया है, तो वे भगवान के पास गये। ब्रह्माजी के साथ मरीचि इत्यादि ऋषि तथा सनन्दन जैसे योगीजन थे, किन्तु हे राजा! उस तेज के समक्ष ब्रह्मा तथा उनके साथी भी नगण्य प्रतीत हो रहे थे। |
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