श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.20.5 
 
 
नाहं बिभेमि निरयान्नाधन्यादसुखार्णवात् ।
न स्थानच्यवनान्मृत्योर्यथा विप्रप्रलम्भनात् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं नरक, दरिद्रता, दुखों के बड़े समुद्र, पद से गिर जाने या साक्षात् मृत्यु से भी उतना नहीं डरता जितना कि एक ब्राह्मण को ठगने से डरता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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