श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  8.20.34 
 
 
पदं द्वितीयं क्रमतस्त्रिविष्टपं
न वै तृतीयाय तदीयमण्वपि ।
उरुक्रमस्याङ्‍‍घ्रिरुपर्युपर्यथो
महर्जनाभ्यां तपस: परं गत: ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  सरकार ने दूसरा क़दम रखा तो स्वर्गलोक के मंडल ढक गए। तीसरे क़दम के लिए तो ज़रा-सा भी भूमि अवकाश न रहा क्योंकि सरकार का पग तो महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, यहाँ तक कि सत्यलोक से भी ऊपर तक फैल गया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत बीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.