पर्जन्यघोषो जलज: पाञ्चजन्य:
कौमोदकी विष्णुगदा तरस्विनी ।
विद्याधरोऽसि: शतचन्द्रयुक्त-
स्तूणोत्तमावक्षयसायकौ च ॥ ३१ ॥
अनुवाद
मेघ से अव्यभिन्न वाणी वाला भगवान् के पाञ्चजन्य नामक शंख, अत्यंत गतिशील कौमोदकी नामक गदा, विद्याधर नामक तलवार, अनेकों चंद्रमा जैसी आकृतियों से अलंकृत ढाल और तरकसों में सबसे श्रेष्ठ अक्षयसायक ये सभी भगवान् की स्तुति करने के लिए एक साथ प्रकट हुए।