श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  8.20.31 
 
 
पर्जन्यघोषो जलज: पाञ्चजन्य:
कौमोदकी विष्णुगदा तरस्विनी ।
विद्याधरोऽसि: शतचन्द्रयुक्त-
स्तूणोत्तमावक्षयसायकौ च ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  मेघ से अव्यभिन्न वाणी वाला भगवान् के पाञ्चजन्य नामक शंख, अत्यंत गतिशील कौमोदकी नामक गदा, विद्याधर नामक तलवार, अनेकों चंद्रमा जैसी आकृतियों से अलंकृत ढाल और तरकसों में सबसे श्रेष्ठ अक्षयसायक ये सभी भगवान् की स्तुति करने के लिए एक साथ प्रकट हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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