श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  8.20.3 
 
 
स चाहं वित्तलोभेन प्रत्याचक्षे कथं द्विजम् ।
प्रतिश्रुत्य ददामीति प्राह्रादि: कितवो यथा ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं महाराज प्रह्लाद का पौत्र हूँ। जब मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मैं यह भूमि दान में दूँगा तो फिर धन के लालच में मैं अपने वादे से कि तरह मुकर सकता हूँ? मैं एक सामान्य ठग की तरह कैसे बर्ताव कर सकता हूँ, खासकर एक ब्राह्मण के प्रति?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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