श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 25-29
 
 
श्लोक  8.20.25-29 
 
 
हृद्यङ्ग धर्मं स्तनयोर्मुरारे-
र्ऋतं च सत्यं च मनस्यथेन्दुम् ।
श्रियं च वक्षस्यरविन्दहस्तां
कण्ठे च सामानि समस्तरेफान् ॥ २५ ॥
इन्द्रप्रधानानमरान्भुजेषु
तत्कर्णयो: ककुभो द्यौश्च मूर्ध्नि ।
केशेषु मेघाञ्छ्वसनं नासिकाया-
मक्ष्णोश्च सूर्यं वदने च वह्निम् ॥ २६ ॥
वाण्यां च छन्दांसि रसे जलेशं
भ्रुवोर्निषेधं च विधिं च पक्ष्मसु ।
अहश्च रात्रिं च परस्य पुंसो
मन्युं ललाटेऽधर एव लोभम् ॥ २७ ॥
स्पर्शे च कामं नृप रेतसाम्भ:
पृष्ठे त्वधर्मं क्रमणेषु यज्ञम् ।
छायासु मृत्युं हसिते च मायां
तनूरुहेष्वोषधिजातयश्च ॥ २८ ॥
नदीश्च नाडीषु शिला नखेषु
बुद्धावजं देवगणानृषींश्च ।
प्राणेषु गात्रे स्थिरजङ्गमानि
सर्वाणि भूतानि ददर्श वीर: ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा! उन्होंने भगवान श्री मुरारि के हृदय में धर्म, वक्षस्थल पर मधुर शब्द तथा सत्य, मन में चंद्रमा, छाती पर कमल पुष्प लिए लक्ष्मी जी, गले में सारे वेद तथा सारी ध्वनियां, बाहों में इंद्र आदि सारे देवता, दोनों कानों में सारी दिशाएं, सिर पर ऊंचे लोक, बालों में बादल, नासिका में वायु, आंखों में सूर्य और मुंह में अग्नि देखी। उनके शब्दों से सारे वैदिक मंत्र निकल रहे थे, उनकी जीभ पर जलदेवता वरुणदेव थे, उनकी भौंहों पर विधि-विधान तथा उनकी पलकों पर दिन-रात थे, उनकी आंखें खुली रहने पर दिन और बंद होने पर रात्रि थी। उनके मस्तक पर क्रोध और उनके होठों पर लालच था। हे राजा! उनके स्पर्श में कामेच्छाएं, उनके वीर्य में सारे जल, उनकी पीठ पर अधर्म, उनके अद्भुत कार्यों या पगों में यज्ञ की अग्नि थी। उनकी छाया में मृत्यु, उनकी मुस्कुराहट में माया और उनके शरीर के बालों पर सारी औषधियां और लताएं थीं। उनकी नसों में सारी नदियां, उनके नाखूनों में सारे पत्थर, उनकी बुद्धि में ब्रह्मा जी, देवता और महान ऋषिगण थे, और उनके सारे शरीर तथा इंद्रियों में सारे जड़ तथा चेतन जीव थे। इस प्रकार बलि महाराज ने भगवान के विशाल शरीर में हर वस्तु को देखा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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