श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  8.20.24 
 
 
सन्ध्यां विभोर्वाससि गुह्य ऐक्षत्
प्रजापतीञ्जघने आत्ममुख्यान् ।
नाभ्यां नभ: कुक्षिषु सप्तसिन्धू-
नुरुक्रमस्योरसि चर्क्षमालाम् ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  बलि महाराज ने अद्भुत कार्य करने वाले भगवान् के कपड़ों के नीचे साँझ का दृश्य देखा। भगवान् के निजी अंगों में उन्होंने प्रजापति को देखा और कमर के गोलाकार भाग में उन्होंने अपने आप को अपने विश्वासपात्रों के साथ देखा। भगवान् की नाभि में उन्होंने आकाश देखा, भगवान् की कमर पर उन्होंने सातों समुद्र देखे और भगवान् के सीने पर उन्होंने तारों के सभी समूह देखे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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