उसके बाद राजा इंद्र के सिंहासन पर बैठे बलि महाराज ने अधोलोक को, जैसे रसातल को, भगवान के विराट रूप के पाँव के तलवों पर देखा। उन्होंने भगवान के पाँवों पर पृथ्वी को, पिंडलियों पर सारे पर्वतों को, घुटनों पर विविध पक्षियों को और जाँघों पर वायु के विभिन्न प्रकारों (मरुद्गण) को देखा।