श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.20.21 
 
 
तद् वामनं रूपमवर्धताद्भ‍ुतं
हरेरनन्तस्य गुणत्रयात्मकम् ।
भू: खं दिशो द्यौर्विवरा: पयोधय-
स्तिर्यङ्‌नृदेवा ऋषयो यदासत ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  तब अनन्त भगवान्, जिन्होंने वामन का रूप धारण कर रखा था, भौतिक शक्ति की दृष्टि से संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हो गए। पृथ्वी, लोक, आकाश, दिशाएँ, और ब्रह्मांड के सभी छिद्र, समुद्र, पशु, पक्षी, मनुष्य, देवता और ऋषिमुनि, सभी उनके शरीर के भीतर समा गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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