श्रीबलिरुवाच
सत्यं भगवता प्रोक्तं धर्मोऽयं गृहमेधिनाम् ।
अर्थं कामं यशो वृत्तिं यो न बाधेत कर्हिचित् ॥ २ ॥
अनुवाद
बलि महाराज बोले : जैसे तुमने कहा, वैसा ही है। गृहस्थ का असली धर्म वही है जो उसके आर्थिक विकास, इन्द्रियतृप्ति, यश और जीविका के साधनों में बाधक न हो। मैं भी सोचता हूँ कि धर्म का यही सही सिद्धांत है।