श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.20.2 
 
 
श्रीबलिरुवाच
सत्यं भगवता प्रोक्तं धर्मोऽयं गृहमेधिनाम् ।
अर्थं कामं यशो वृत्तिं यो न बाधेत कर्हिचित् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  बलि महाराज बोले : जैसे तुमने कहा, वैसा ही है। गृहस्थ का असली धर्म वही है जो उसके आर्थिक विकास, इन्द्रियतृप्ति, यश और जीविका के साधनों में बाधक न हो। मैं भी सोचता हूँ कि धर्म का यही सही सिद्धांत है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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