यजमान: स्वयं तस्य श्रीमत् पादयुगं मुदा ।
अवनिज्यावहन्मूर्ध्नि तदपो विश्वपावनी: ॥ १८ ॥
अनुवाद
भगवान वामनदेव की पूजा करने वाले बलि महाराज ने प्रसन्नतापूर्वक भगवान के चरणकमलों को धोया; फिर उस जल को अपने सिर पर धारण किया क्योंकि वह जल सम्पूर्ण विश्व का उद्धार करता है।