विन्ध्यावलिस्तदागत्य पत्नी जालकमालिनी ।
आनिन्ये कलशं हैममवनेजन्यपां भृतम् ॥ १७ ॥
अनुवाद
विध्यावलि, बलि महाराज की पत्नी, जिसने मोतियों की माला पहन रखी थी, तुरंत वहाँ आई और अपने साथ पानी से भरा सोने का एक बड़ा जलपात्र लेती आईं ताकि भगवान के चरणों को धोकर उनकी पूजा की जा सके।