श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  8.20.17 
 
 
विन्ध्यावलिस्तदागत्य पत्नी जालकमालिनी ।
आनिन्ये कलशं हैममवनेजन्यपां भृतम् ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  विध्यावलि, बलि महाराज की पत्नी, जिसने मोतियों की माला पहन रखी थी, तुरंत वहाँ आई और अपने साथ पानी से भरा सोने का एक बड़ा जलपात्र लेती आईं ताकि भगवान के चरणों को धोकर उनकी पूजा की जा सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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