श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  8.20.14 
 
 
श्रीशुक उवाच
एवमश्रद्धितं शिष्यमनादेशकरं गुरु: ।
शशाप दैवप्रहित: सत्यसन्धं मनस्विनम् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: तत्पश्चात्, भगवान् से प्रेरित होकर गुरु शुक्राचार्य ने अपने उच्च शिष्य बलि महाराज को शाप दिया, जो बहुत उदार और सत्यनिष्ठ थे। उन्होंने गुरु के आदेशों का पालन करने के बजाय उनकी आज्ञा तोड़ने की इच्छा की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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