श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 20: बलि महाराज द्वारा ब्रह्माण्ड समर्पण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.20.10 
 
 
मनस्विन: कारुणिकस्य शोभनं
यदर्थिकामोपनयेन दुर्गति: ।
कुत: पुनर्ब्रह्मविदां भवाद‍ृशां
ततो वटोरस्य ददामि वाञ्छितम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  दान देने से उदार और दयालु व्यक्ति निस्संदेह अधिक शुभ बनता है, खास तौर पर तब जब वह आप जैसे व्यक्ति को दान देता है। ऐसे में मुझे इस छोटे से ब्रह्मचारी को वह सब कुछ देना चाहिए जो वह मुझसे मांगता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.