श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  8.2.7 
 
 
नानारण्यपशुव्रातसङ्कुलद्रोण्यलङ्‌कृत: ।
चित्रद्रुमसुरोद्यानकलकण्ठविहङ्गम: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  त्रिकूट पर्वत की तलहटी में विविध प्रकार के वन्य जीवों से सुसज्जित घाटियां हैं, और देवताओं के उद्यानों में लगे वृक्षों पर विभिन्न तरह के पक्षी मधुर आवाजों से चहचहाते रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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