श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  8.2.6 
 
 
यत्र सङ्गीतसन्नादैर्नदद्गुहममर्षया ।
अभिगर्जन्ति हरय: श्लाघिन: परशङ्कया ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  स्वर्ग के निवासियों के मधुर संगीत से गुफाएँ गूंजायमान हैं। इस ध्वनि को सुनकर वहाँ के सिंह, जो अपनी शक्ति के मद में चूर हैं, असहनीय ईर्ष्या से भर जाते हैं। वे सोचते हैं कि कोई अन्य सिंह उसी तरह से दहाड़ रहा है, और वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसलिए, वे अपने गुस्से और ईर्ष्या को दिखाने के लिए जोर-जोर से गर्जना करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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