श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.2.5 
 
 
सिद्धचारणगन्धर्वैर्विद्याधरमहोरगै: ।
किन्नरैरप्सरोभिश्च क्रीडद्भ‍िर्जुष्टकन्दर: ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  उच्च लोकों के निवासी - सिद्ध, चारण, गंधर्व, विद्याधर, नाग, किन्नर और अप्सराएँ - खेलने-कूदने और आनंद लेने के लिए इस पर्वत पर आते हैं। इसलिए इस पर्वत की सारी गुफाएँ इन स्वर्गीय ग्रहों के निवासियों से भरी रहती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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