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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट
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श्लोक 4
श्लोक
8.2.4
स चावनिज्यमानाङ्घ्रि: समन्तात् पयऊर्मिभि: ।
करोति श्यामलां भूमिं हरिन्मरकताश्मभि: ॥ ४ ॥
अनुवाद
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पर्वत के नीचे की धरती हमेशा दूध की लहरों से धुली हुई रहती है और वो लहरें वहाँ हर दिशा में मरकत मणियाँ पैदा करती रहती हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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