श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  8.2.32 
 
 
न मामिमे ज्ञातय आतुरं गजा:
कुत: करिण्य: प्रभवन्ति मोचितुम् ।
ग्राहेण पाशेन विधातुरावृतो-
ऽप्यहं च तं यामि परं परायणम् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  जब मेरे साथी हाथी और अन्य संबंधी मुझे इस संकट से नहीं बचा सके तो मेरी पत्नियों का तो क्या कहना? वे कुछ नहीं कर सकतीं। यह भाग्य की इच्छा थी कि इस मगरमच्छ ने मुझ पर हमला किया है, इसलिए मैं उस परमेश्वर की शरण में जाता हूँ जो हमेशा हर किसी को, यहाँ तक कि महान व्यक्तियों को भी, शरण देता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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