इत्थं गजेन्द्र: स यदाप सङ्कटं
प्राणस्य देही विवशो यदृच्छया ।
अपारयन्नात्मविमोक्षणे चिरं
दध्याविमां बुद्धिमथाभ्यपद्यत ॥ ३१ ॥
अनुवाद
जब गजेन्द्र ने देखा कि प्रारब्ध के वश वह मगरमच्छ के चंगुल में फँस गया है और परिस्थिति में फँसकर निरीह हो गया है। स्वयं को संकट से बचा नहीं पा रहा है तो मारे जाने के भय से घिर गया। सोच-विचार के बाद उसने यह निश्चय किया।