श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  8.2.28 
 
 
तथातुरं यूथपतिं करेणवो
विकृष्यमाणं तरसा बलीयसा ।
विचुक्रुशुर्दीनधियोऽपरे गजा:
पार्ष्णिग्रहास्तारयितुं न चाशकन् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  उसके बाद, गजेन्द्र को ऐसी दुःखदायक स्थिति में देखकर उसकी पत्नियाँ अत्यधिक दुःखी हुईं और चीख-पुकार मचाने लगीं। अन्य हाथियों ने गजेन्द्र की सहायता करना चाहा, लेकिन मगरमच्छ की बहुत अधिक ताकत के कारण वे उसे पीछे से पकड़कर बचा नहीं सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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