श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  8.2.27 
 
 
तं तत्र कश्चिन्नृप दैवचोदितो
ग्राहो बलीयांश्चरणे रुषाग्रहीत् ।
यद‍ृच्छयैवं व्यसनं गतो गजो
यथाबलं सोऽतिबलो विचक्रमे ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, भाग्य के फेर से एक बलवान मगरमच्छ ने, जो हाथी से रुष्ट था, जल के भीतर से ही हाथी के पैर पर आक्रमण कर दिया। हाथी निश्चय ही शक्तिशाली था और उसने भाग्य के द्वारा भेजे गए इस संकट से अपनी सामर्थ्य भर स्वयं को छुड़ाने का यत्न किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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