स पुष्करेणोद्धृतशीकराम्बुभि-
र्निपाययन्संस्नपयन्यथा गृही ।
घृणी करेणु: करभांश्च दुर्मदो
नाचष्ट कृच्छ्रं कृपणोऽजमायया ॥ २६ ॥
अनुवाद
किसी आध्यात्मिक ज्ञान से वंचित और अपने परिवार के लोगों के प्रति अत्यधिक आसक्त व्यक्ति की तरह हाथी भी कृष्ण की बाहरी शक्ति (माया) से भ्रमित होकर अपनी पत्नियों और बच्चों को नहलाया और पानी पिलाया। उसने अपनी सूंड में झील से पानी भरा और उन सब पर छिड़का। उसे इस कार्य में लगने वाली कड़ी मेहनत की परवाह नहीं थी।