श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.2.25 
 
 
विगाह्य तस्मिन्नमृताम्बु निर्मलं
हेमारविन्दोत्पलरेणुरूषितम् ।
पपौ निकामं निजपुष्करोद्‌धृत-
मात्मानमद्भ‍ि: स्‍नपयन्गतक्लम: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  गजराज ने उस सरोवर में प्रवेश किया, अच्छी तरह से स्नान किया और अपने थकावट से निवृत्त हो गया। उसके बाद, उसने अपनी सूँड़ से कमल तथा जलकुमुदिनी के पराग से मिश्रित ठंडे, स्वच्छ और अमृत के समान पानी को भरपूर मात्रा में पीया, जब तक कि वह पूर्ण रूप से संतुष्ट न हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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