श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  8.2.22 
 
 
वृका वराहा महिषर्क्षशल्या
गोपुच्छशालावृकमर्कटाश्च ।
अन्यत्र क्षुद्रा हरिणा: शशादय
श्चरन्त्यभीता यदनुग्रहेण ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  इस हाथी की कृपा से लोमड़ी, भेडिय़ा, भैंसें, भालू, सुअर, गोपुच्छ, सेही, बंदर, खरहे, हिरन और कई अन्य छोटे जानवर जंगल में खुलेआम घूमते रहते थे। वे उससे नहीं डरते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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