बिल्वै: कपित्थैर्जम्बीरैर्वृतो भल्लातकादिभि: ।
तस्मिन्सर: सुविपुलं लसत्काञ्चनपङ्कजम् ॥ १४ ॥
कुमुदोत्पलकह्लारशतपत्रश्रियोर्जितम् ।
मत्तषट्पदनिर्घुष्टं शकुन्तैश्च कलस्वनै: ॥ १५ ॥
हंसकारण्डवाकीर्णं चक्राह्वै: सारसैरपि ।
जलकुक्कुटकोयष्टिदात्यूहकुलकूजितम् ॥ १६ ॥
मत्स्यकच्छपसञ्चारचलत्पद्मरज:पय: ।
कदम्बवेतसनलनीपवञ्जुलकैर्वृतम् ॥ १७ ॥
कुन्दै: कुरुबकाशोकै: शिरीषै: कूटजेङ्गुदै: ।
कुब्जकै: स्वर्णयूथीभिर्नागपुन्नागजातिभि: ॥ १८ ॥
मल्लिकाशतपत्रैश्च माधवीजालकादिभि: ।
शोभितं तीरजैश्चान्यैर्नित्यर्तुभिरलं द्रुमै: ॥ १९ ॥
अनुवाद
उस बगीचे में एक विशाल सरोवर था जिसमें सुनहरे रंग के कमल के फूल, कुमुद, कह्लार, उत्पल और शतपत्र खिले हुए थे। ये फूल पहाड़ की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे। वहाँ बिल्व, कपित्थ, जम्बीरा और भल्लातक के पेड़ भी थे। मतवाले भंवरे शहद पी रहे थे और अपने मधुर गुंजन से पक्षियों के चहचहाने के सुर में सुर मिला रहे थे। सरोवर में हंस, कारंडव, चक्रवाक, सारस, जलमुर्गी, दात्यूह, कोयष्टि और अन्य चहचहाते पक्षियों के झुंड उड़ रहे थे। मछलियों और कछुओं की गतिविधियों से सरोवर में कमल के फूलों से गिरा पराग फैल रहा था और पानी का रंग और निखर रहा था। सरोवर के चारों ओर कदंब, वेतस, नल, नीप, वंजुलक, कुंद, कुरुबक, अशोक, शिरीष, कूटज, इंगुद, कुब्जक, स्वर्णयूथी, नाग, पुन्नाग, जाति, मल्लिका, शतपत्र, जालका और माधवी लताएँ थीं। सरोवर के किनारे सभी ऋतुओं में फूल और फल देने वाले पेड़ों से सजे हुए थे। इस तरह पूरा पहाड़ बेहद खूबसूरत लग रहा था।