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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 2: गजेन्द्र का संकट
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श्लोक 1
श्लोक
8.2.1
श्रीशुक उवाच
आसीद् गिरिवरो राजंस्त्रिकूट इति विश्रुत: ।
क्षीरोदेनावृत: श्रीमान्योजनायुतमुच्छ्रित: ॥ १ ॥
अनुवाद
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शुकदेव गोस्वामी बोले: हे राजन, त्रिकूट नामक एक विशाल पर्वत है। यह दस हजार योजन (८० हजार मील) ऊँचा है। क्षीरसागर से घिरे होने के कारण इसकी स्थिति बहुत ही रमणीय है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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