श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  8.19.4 
 
 
न सन्ति तीर्थे युधि चार्थिनार्थिता:
पराङ्‌मुखा ये त्वमनस्विनो नृप ।
युष्मत्कुले यद्यशसामलेन
प्रह्लाद उद्भ‍ाति यथोडुप: खे ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा बलि! आपके कुल में आज तक ऐसा कोई तुच्छ चित्त वाला राजा उत्पन्न नहीं हुआ है जिसने तीर्थ स्थान में ब्राह्मणों द्वारा मांगी जाने पर भी दान देने से इंकार कर दिया हो या युद्धभूमि में क्षत्रिय योद्धाओं से युद्ध करने से मुंह मोड़ लिया हो। और इस तरह आपके वंश का यश यशस्वी प्रह्लाद महाराज के कारण और भी अधिक बढ़ गया है, जो आकाश में सुंदर चंद्रमा के समान तेजस्वी हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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