श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  8.19.37 
 
 
धर्माय यशसेऽर्थाय कामाय स्वजनाय च ।
पञ्चधा विभजन्वित्तमिहामुत्र च मोदते ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए जो ज्ञानी है, उसे अपने संचित धन को पाँच भागों में विभाजित करना चाहिए - धर्म के लिए, प्रतिष्ठा के लिए, संपन्नता के लिए, इंद्रिय सुख के लिए और अपने परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण के लिए। ऐसा व्यक्ति इस दुनिया में और अगले जन्म में भी सुखी रहता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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