क्रमतो गां पदैकेन द्वितीयेन दिवं विभो: ।
खं च कायेन महता तार्तीयस्य कुतो गति: ॥ ३४ ॥
अनुवाद
सर्वप्रथम वामनदेव एक पग से तीनों लोकों को घेर लेंगे, तत्पश्चात् वे दूसरा पग रखेंगे और पूर्ण ब्रह्मांड को ले लेंगे और फिर, अपने विशाल रूप में फैलकर, वे सृष्टि के प्रत्येक कण पर अधिकार कर लेंगे। तब तुम उन्हें तीसरा पग रखने के लिए कहाँ स्थान दोगे?