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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना
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श्लोक 32
श्लोक
8.19.32
एष ते स्थानमैश्वर्यं श्रियं तेजो यश: श्रुतम् ।
दास्यत्याच्छिद्य शक्राय मायामाणवको हरि: ॥ ३२ ॥
अनुवाद
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यह जो ब्रह्मचारी दिख रहा है, यह वास्तव में भगवान् हरि हैं। वे तुम्हारी सारी भूमि, सम्पत्ति, सौन्दर्य, शक्ति, यश और शिक्षा छीनने के लिए आए हैं। यह तुम्हारा सर्वस्व छीनकर तुम्हारे शत्रु इन्द्र को दे देंगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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