श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 19: बलि महाराज से वामनदेव द्वारा दान की याचना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.19.30 
 
 
श्रीशुक्र उवाच
एष वैरोचने साक्षाद् भगवान्विष्णुरव्यय: ।
कश्यपाददितेर्जातो देवानां कार्यसाधक: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  शुक्राचार्य ने कहा : हे विरोचन के पुत्र! ये वामन रूपधारी ब्रह्मचारी साक्षात अव्यय भगवान विष्णु हैं। इन्होंने कश्यप मुनि को अपने पिता व अदिति को अपनी माता स्वीकार करके देवताओं का हित साधने के लिए अवतार लिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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